ग़ज़ल
गाँव में वैसी सुहानी, अब कहीं होली नहीं। बोल से मन को रिझाले,नेह की बोली नहीं। सूखी पड़ीं पिचकारियाँ रँग
Read More‘घर में लगती है आग घर के ही चिराग से।’यह कहावत कुछ यों ही नहीं बन गई।इसी प्रकार ‘घर का
Read Moreआप सभी लोग मुझे बहुत अच्छी तरह से जानते- पहचानते हैं। प्रायः लोग मुझे ‘दहेज’ के नाम से जानते हैं।दहेज़
Read Moreलाल – हरे तुलसी के पत्ते। लगते तीखे जब हम चखते।। कहती दादी अति गुणकारी। तुलसी-दल की महिमा न्यारी। वात
Read Moreशीत बढ़ी आ गई रजाई। मौसम ने ली है अँगड़ाई।। दादी अम्मा शी-शी करतीं। ओढ़ रजाई सर्दी हरतीं।। दिन में
Read Moreचूल्हे वाली रोटी खाएँ। अपना तन-मन स्वस्थ बनाएँ। बनी गैस की रोटी खाता। रोग धाम तन-मन बन जाता। उदर -रोग
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