Author: *डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – गोबराहारी गुबरैला जी

‘गोबर’ एक सार्वभौमिक और सार्वजनीन संज्ञा शब्द है।साहित्य के मैदान में इसने भी बड़े -बड़े झंडे गाड़े हैं।हिंदी साहित्य के

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गीत/नवगीत

बासी हवा महकने लगती

खिड़की खुलतीजब अतीत कीबासी हवा महकने लगती। कंचा-गोलीआँख मिचौलीकागज की वह नाव चली।ग्रामोफोनरेडियो बजतेयहाँ वहाँ पर गली- गली।। ऊँची कूदकब्बड्डी

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