गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 14/09/201706/10/2017 गज़ल कहीं पे बचपना कहीं पे जवानी कम है, यहां चालबाजी है ज्यादा शैतानी कम है अब नहीं होती हैं लोगों Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 12/09/201712/09/2017 गज़ल दिल, जिगर, अबरू, पलक सबको है, तेरे आने की खबर दूर तलक सबको है ना देखो हमको यूँ गुरूर से Read More
सामाजिक *भरत मल्होत्रा 12/09/201712/09/2017 लेख हममें से ज्यादातर लोगों को ये शिकायत रहती है कि इस संसार में मैं ही दुखी हूँ। बाकी सब लोग Read More
गीत/नवगीत *भरत मल्होत्रा 09/09/201715/09/2017 गीत : ये जो ज़िंदगी की किताब है ये जो ज़िंदगी की किताब है, ये किताब भी क्या किताब है, कहीं सदियों का भी ज़िकर नहीं, कहीं लम्हों Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 04/09/201706/10/2017 गज़ल मेरे दिल को तड़पाता बहुत है, फिर भी याद वो आता बहुत है है दीगर बात मैं सुनता नहीं हूँ, Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 31/08/201706/10/2017 गज़ल सपने जैसा किसी के दिल में पलता रहता हूँ, अपनी लौ में अक्सर खुद ही जलता रहता हूँ थक जाता Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 26/08/201726/08/2017 गज़ल दिल-ए-बेताब को जब भी तेरा पैगाम मिल जाए, लगे ऐसा किसी बच्चे को ज्यों ईनाम मिल जाए ज़रा सा मुस्कुराकर Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 22/08/201724/08/2017 गज़ल हमें भी रंग बदलना आ गया है, गिर-गिरकर संभलना आ गया है ना धुआं है ना ही आवाज़ कोई, खामोशी Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 16/08/201719/08/2017 गज़ल बात कुछ ना थी बवंडर हो गए, महल आलीशान खंडहर हो गए वक्त के हाथों बचा ना कोई भी, दफन Read More
गीतिका/ग़ज़ल *भरत मल्होत्रा 14/08/201719/08/2017 गज़ल तू भी मेरी तरह ही गलती का पुतला निकला, मैंने समझा था तुझे क्या और तू क्या निकला तमाम शहर Read More