मानवता आज भी ज़िंदा है
भले हम कितना भी कोस ले कलयुग को और इंसानी फ़ितरत को की इंसानियत मर गई है, अपनापन ख़त्म हो
Read Moreभले हम कितना भी कोस ले कलयुग को और इंसानी फ़ितरत को की इंसानियत मर गई है, अपनापन ख़त्म हो
Read Moreहे ईश्वर हम चोरी, भ्रष्टाचार, दंगे, बलात्कार और धर्मांधता के आदी तो बन चुके है। अब रहम करो हर कोई
Read Moreकितने विमर्श, कितनी तारीफें, कितनी संवेदना लिखी गई है औरतों को लेकर। पर हर कोई भूल चुका है कि मर्द
Read Moreकितना भी इस पंक्तियों को हम गुनगुनाएं पर ज़िंदगी कि आपाधापी से उलझते एक आतंक से उभरे ना उभरे कि,
Read Moreये कोरोना की महामारी ऐसे जल्दी से जाने वाली लगती नहीं, आदत ड़ाल लो इसके साथ जीने की। पर कुछ
Read Moreआत्मविश्वास एक बहुत बड़ी पूँजी होती है जो इंसान को कभी हारने नहीं देती, सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास गहना है
Read Moreउनकी स्वायत्तशासी का स्वीकार करो पितृसत्ता के पक्षधरों, अपनी लकीरों में खुद खुशियाँ भरना सीख गई है, आज की नारी
Read Moreबेशक मोबाइल जैसे छोटे से मशीन ने हमारे कई काम आसान कर दिए पर जैसे हर चीज़ के दो पहलू
Read Moreसाहित्य के संसार में हर तीसरे पन्ने पर शायद एक पूरा समुन्दर भरा पड़ा होगा स्त्री विमर्श में लहराता। पर
Read More