एक प्रश्नचिह्न:
यथार्थ में नारी सशक्तिकरण आज भी अधूरा सा ख़्वाब है ! यथार्थ यही है आप माने या न माने किंतु
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Read Moreकुबूल दुआ हुई कि, हुई मुलाकात चाँद से, तिरंगे ने लहरा सुनाई, मुलाकात चाँद से । कि जन्नत‐सा, गुलज़ार हुआ
Read Moreज़माना पहले ब्लैक एन व्हाइट था, लव एट फर्स्ट साइट था । नजरे उठने-झुकने में शराफत थी, नूर सादगी संग
Read Moreबरसों पुरानी बात हो गई है घरों में अथक परिश्रम से बने हुए नाश्ते बच्चों को बहुत लुभाते थे |
Read Moreसोच हर दिन की नई ले पल रही है जिंदगी, बस कभी हँस कर कभी रो ढल रही है ज़िंदगी।
Read Moreखीझते हैं पति,जब- जब औरत,घर को सजाती,बिन कहे ही,सबकी जरूरतों का,सामान जुटाती,अपने ख़र्चे में से,कभी कपड़े, उपहार,जूते, फोन, चिप्सऔर न
Read Moreसाक्षी हो गया ज़माना फिर, एक चित्कार का, तड़पन का, सामने होते निर्मम अत्याचार का, चरम है ये पुरुषत्व दुर्व्यवहार
Read Moreखुश हो जाती औरतें… घर के सारे काम कर, घर को सजाती औरतें । घर-बाहर की थकन चाय के प्याले
Read Moreसूखते प्रेम के पत्तों में मिल नव प्राण भरते हैं । बीते गम भुला कर हम नव प्रण आज करते
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