मुक्तक
ओमीक्रोन वायरस है लहराया, करोना नव रूप धर फिर है छाया । खो अपने ग़र तू अब जो न संभला,
Read Moreलो चले दूर हो सब कहाँ ? ज़रा संभलो घड़ी है विकट विरल हुआ जहां । ———— वो घड़ी थी
Read Moreज्यों ही गाड़ी से उतरी, पाँव ज़मीन पर धरते ही देखा, गाड़ी के एकदम आगे स्याह श्यामल रंग का एक
Read More‘अम्मा न तुमने इत बार दीये दादा बनाए, और न तोई तैयाली कल लई हो दुकान सजाने की।’ 7 वर्ष
Read Moreरमन का लंच के समय अचानक ही आज फोन आ गया और एकदम सकपकाते हुए बोले – कई दिन हो गए,
Read Moreमाँ तुम जैसा स्नेह-ममत्व पाऊँ, कहाँ जग में । —— कभी बनती, गौरी कभी काली सी, माँ कल्याण को ।
Read Moreटीका काजल को लगा, लाल भाल चमकाय । बुरी नज़र से ढाँक ले, माँ तो नेह लुटाय ।। काजल
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