ग़ज़ल
खुशियों के मौसम में लगती, मायूसी सी छाई है।पेशानी पर बल हैं सबके ,कमरतोड़ महँगाई है।। टँगी अलगनी पर कोने
Read Moreसमीक्ष्य कृति: आँगन की दीवारों से ( ग़ज़ल संग्रह) कवि: नंदी लाल ‘निराश’ प्रकाशक: निष्ठा प्रकाशन,गाज़ियाबाद ( उ प्र) प्रकाशन
Read More“अरे! वर्मा जी, कहाँ जा रहे है? कहीं घूमने जा रहे हैं क्या?”“हाँ, ऐसा ही समझ लीजिए, भाई साहब!”“मतलब आप
Read Moreराजमार्ग से प्रश्न कर रही,गाँवों की पगडंडी। कब पहुँचेगामेरे द्वारे,यह विकास पाखंडी। बूढ़े गाँवों मेंदिखता है,सुविधाओं का टोटा।बच्चे मार रहेतख्ती
Read Moreलेकर हाथ तिरंगा। रैली,धरना,हड़तालों मेंहोता है अब दंगा। नहीं बोलने की आज़ादी,लोग लगाते नारे।रोक सड़क की आवाजाही,बैठें पैर पसारे। लोकतंत्र
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