यशोदानंदन-३३
पृथ्वी पर हेमन्त ऋतु का आगमन हो चुका था। कास के श्वेत पुष्पों से धरा आच्छादित थी। प्रभात होते ही
Read Moreपृथ्वी पर हेमन्त ऋतु का आगमन हो चुका था। कास के श्वेत पुष्पों से धरा आच्छादित थी। प्रभात होते ही
Read Moreराधा का गोरा मुखमंडल लज्जासे आरक्त हो उठा। मन में असमंजस के भाव उठ रहे थे – एक अपरिचित छोरे
Read Moreकालिया नाग ने श्रीकृष्ण के आदेश का त्वरा से पालन किया। श्रीकृष्ण भी मुस्कुराते हुए अपने स्वजनों के पास लौट
Read Moreयमुना के किनारे यमुना के जल की ही एक विशाल झील थी। कोई भी पशु-पक्षी भूले से भी अगर उसका
Read Moreश्रीकृष्ण जैसे-जैसे बड़े हो रहे थे, उनके सम्मोहन में गोप-गोपियां, ग्वाल-बाल, पशु-पक्षी, नदी-नाले, पहाड़ी-पर्वत, पेड़-पौधे, वन-उपवन – सभी एक साथ
Read Moreगोधन एवं गोपों का अपहरण कर ब्रह्मा जी उन्हें अपने लोक में ले गए। अपनी योग-शक्ति से उन्होंने सबको सुला
Read Moreश्रीकृष्ण-वध के लिए दृढ़ संकल्प अघासुर शीघ्र ही वृन्दावन के उस स्थान पर पहुंच गया जहां श्रीकृष्ण अपने ग्वाल-बालों के
Read Moreश्रीकृष्ण, भैया दाऊ और अपने मित्रों के साथ नियमित रूप से वन जाने लगे। वे चारागाह जाते, गाय-बछड़ों को स्वतंत्र
Read Moreगोकुल में हो रहे नित्य के उत्पातों ने नन्द बाबा और अन्य वरिष्ठों को चिन्ता में डाल दिया था। इस
Read Moreचोर कहलाना कोई पसंद नहीं करता, लेकिन कान्हा अपने लिए ‘माखनचोर’ का संबोधन सुनकर भी मुस्कुराते रहते थे। मातु यशोदा
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