अंटी मार रहे
वो दुकानदार बनके,मार रहे हैं अंटीकभी हक-अधिकार कोकभी रोजी-रोजगार को।सोंचता हूँ दुकानदार बदलेगापर नही बदलता हैलुभावने वचनों में उलझाकरहमको ही
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Read Moreआविष्कार बहुतायत हो रहेबम बारूद राफेल के तुख्म बो रहेखोज रहे नित्य नए आयामलडाकू विमान सरिस घातक संग्रामधातुओं के बन
Read Moreमनुजों से बैर रख के, खग-नरेतर को सबने चाहा।स्वयं गुलाम रह न सके, पर को वश में करना चाहा।ग्रीवा में
Read Moreमुद्दते लग गई चुनने मेंएक-एक ईंट दीवार कीजब सफलता के शिखर में पहुँचातो मौसम बदल गया थाबच्चे बड़े हो गए
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