सब रीत मेरे विपरीत
ये रीत के ठेकेदारों नेनिज स्वार्थ को नियम बनाये।हर ठौर में विपरीतभिन्न-भिन्न के विधि लगाये।भर्ता के प्राण हरण परजगत में
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Read Moreमैं व्याकुल और परेशान हूँशहर के नीतियों को देख हैरान हूँअर्द्धदिवस का काम देते हैंआमजन यह सब कैसे सह लेते
Read Moreवो दुकानदार बनके,मार रहे हैं अंटीकभी हक-अधिकार कोकभी रोजी-रोजगार को।सोंचता हूँ दुकानदार बदलेगापर नही बदलता हैलुभावने वचनों में उलझाकरहमको ही
Read Moreआविष्कार बहुतायत हो रहेबम बारूद राफेल के तुख्म बो रहेखोज रहे नित्य नए आयामलडाकू विमान सरिस घातक संग्रामधातुओं के बन
Read Moreमनुजों से बैर रख के, खग-नरेतर को सबने चाहा।स्वयं गुलाम रह न सके, पर को वश में करना चाहा।ग्रीवा में
Read Moreमुद्दते लग गई चुनने मेंएक-एक ईंट दीवार कीजब सफलता के शिखर में पहुँचातो मौसम बदल गया थाबच्चे बड़े हो गए
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