ग़ज़ल
किसी पत्थर को रोता देखने में, लगे थे सब तमाशा देखने में। ये पाया है ज़माना देखने में, मिला है
Read Moreआज तम की घोर कारा बन गई,प्रारब्ध हाय! ‘दीप’ ने अपनी ‘शिखा’ का साथ छोड़ा बुझ गया। दे गया मायूसियों
Read Moreदो समानांतर लकीरों से सनम हम और तुम, साथ चलते हैं मगर होना मिलन सम्भव नहीं। जोड़कर तुमको घटाया ही
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