ग़ज़ल
चिरागों को लहू से जब भी दीवाने जलाते हैं हवायें थरथरा उठती हैं तूफाँ काँप जाते हैं न सजदे में
Read Moreअपने साये से सदा साथ रहे हम ऐसे अपनी धरती पे झुका रहता है अम्बर जैसे चाँद-तारे भी निकल आते
Read Moreमाँ-बाप क्या चले गये बरकत चली गई नफरत चिता में जल गई, उल्फत चली गई मिलता है जो भी पूछने
Read Moreआप हमारे घर आये क्या यह घर और पवित्र हुआ आपने रंग भरे जो इसमें, नक्शा और सचित्र हुआ जीवन
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