गीतिका/ग़ज़ल *डॉ. डी एम मिश्र 09/07/2023 ग़ज़ल सच कहना यूं अंगारों पर चलना होता है फिर भी यारो सच को सच तो कहना होता है । इधर Read More
गीतिका/ग़ज़ल *डॉ. डी एम मिश्र 07/06/202308/06/2023 ग़ज़ल पत्थरों से तो सर बचा आये चोट फूलों की मार से खाये सारी दुनिया को जीतकर लौटे मात परिवार से Read More
गीतिका/ग़ज़ल *डॉ. डी एम मिश्र 04/05/2023 ग़ज़ल जलेगा चमन तो धुआं भी उठेगा धुआं जो उठेगा तो सबको दिखेगा अकेला नहीं घर है बस्ती में मेरा मेरा Read More
गीतिका/ग़ज़ल *डॉ. डी एम मिश्र 15/04/2023 ग़ज़ल काट दो तो और कल्ले फूटते हैं और भी ताज़े, हरे वे दीखते हैं खूं उतर आता है जब आंखों Read More
समाचार *डॉ. डी एम मिश्र 15/04/2023 डी एम मिश्र के गजल संग्रह का विमोचन एवं परिसंवाद सम्पन्न जन संस्कृति मंच के सहयोग से ‘रेवान्त’ पत्रिका की ओर से चर्चित जनवादी गजलकार डी एम मिश्र (सुल्तानपुर) के नवीनतम Read More
गीतिका/ग़ज़ल *डॉ. डी एम मिश्र 01/03/202328/02/2023 ग़ज़ल शहर ये जले तो जले लोग चुप हैं धुआं भी उठे तो उठे लोग चुप हैं ज़रा सी नहीं फ़िक्र Read More
गीतिका/ग़ज़ल *डॉ. डी एम मिश्र 04/02/2023 ग़ज़ल जो रो नहीं सकता है वो गा भी नहीं सकता जो खो नहीं सकता है वो पा भी नहीं सकता Read More
गीतिका/ग़ज़ल *डॉ. डी एम मिश्र 03/01/2023 ग़ज़ल मारा गया इंसाफ़ मांगने के जुर्म में इंसानियत के हक़ में बोलने के जुर्म में मेरा गुनाह ये है कि Read More
गीतिका/ग़ज़ल *डॉ. डी एम मिश्र 02/12/2022 ग़ज़ल ग़मज़दा आंखों का दो बूंद नीर कैसे बचे? ऐसे हालात में अपना ज़मीर कैसे बचे? धर्म के नाम पे तालीम Read More
गीतिका/ग़ज़ल *डॉ. डी एम मिश्र 08/11/202208/11/2022 ग़ज़ल बड़े वो लोग हैं किरदार की बातें करते सिर्फ़ मोबाइलों से प्यार की बातें करते। बड़ी तेजी से बदलती हुई Read More