कैसे हो पार कश्ती
कैसे हो पार कश्ती घबरा के मर न जाऊँ तूफ़ान में घिरा हूँ ग़श खा के मर न जाऊँ। ख़ुद
Read Moreकैसे हो पार कश्ती घबरा के मर न जाऊँ तूफ़ान में घिरा हूँ ग़श खा के मर न जाऊँ। ख़ुद
Read Moreअपना है मगर अपनो सी इज़्ज़त नहीं देता उड़ता हुआ बादल कभी राहत नहीं देता। फ़रमाइशें हैं शान में
Read Moreग़मे आशिकी ने सँभलना सिखाया समन्दर में गहरे उतरना सिखाया अकेले थे पहले बहुत खुश थे लेकिन तेरी आरज़ू
Read Moreआग लगाने वाले भी कम नहीं यहाँ शोर मचाने वाले भी कम नहीं यहाँ दरिया में उतरे हो तैर नहीं
Read Moreखुला आकाश भी था सामने माक़ूल मौसम था मगर अफ़सोस है उड़ने का उसमें हौसला कम था बहुत मुश्किल था
Read Moreमाँ तू कैसे जा सकती है तेरी यादें ज़िंदा हैं मेरी आँख खोलने वाली तेरी आँखें ज़िंदा हैं उठो लाल
Read Moreसबके समक्ष हाथ पसारा नहीं जाता जो दर्द व्यक्तिगत हो वो बाॅटा नहीं जाता आता है सुअवसर कहाँ जीवन में
Read Moreआधी रात को सारा आलम सोता है एक परिन्दा डाल पे तन्हा रोता है कितने दर्द पराये , कितने अपने
Read Moreछुपाकर कोई काम करते नहीं हैं मगर सबसे हर बात कहते नहीं हैं बड़ा नाज़ है हमको अपनी अना पर
Read Moreबेला, जुही, चमेली, चम्पा, हरसिंगार लिख दे कैसे कोई शायर पतझर को बहार लिख दे उसको खुदा ने आँखें दी
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