क्षरित संस्कृति
मेरा गाँव भी अब शहर हो गया है।प्रकृति से बहुत दूर घर हो गया है। बचपन में खेला, वह पीपल
Read Moreमेरा गाँव भी अब शहर हो गया है।प्रकृति से बहुत दूर घर हो गया है। बचपन में खेला, वह पीपल
Read Moreकरें उजाला दीप जलाकरतम को दूर भगाएं।दीपावली है पर्व प्रेम कामिलजुल इसे मनाएं। झूठ – कपट को मन से त्यागेंसमरसता
Read More1 सूरज का है अंश कहाता।जलकर है अँधियार मिटाता।मिट्टी से वह बना हुआ हैरखता बाती – तेल से नाता। 2
Read Moreहर घर फहरे ध्वजा तिरंगा।नभ में लहरे ध्वजा तिरंगा। त्याग – समर्पण भाव हो जागृतदेशभक्ति का पी लें अमृत भारत
Read Moreखग भरता ऊँची उड़ान हैलेश न पंखों में थकान है पाना है गंतव्य सुनिश्चितचुनौतियों से सावधान है थोड़ा नभ, थोड़ा
Read Moreमारकाट, मारामारी हैदिन में छायी अँधियारी है बढ़ा प्रभाव झूठ का इतनाहुआ सत्य पर ही भारी है दृष्टि मछलियों पर
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