मेरी कहानी – 41
हमारे इम्तिहान हो गए थे और हम गाँव में घूमते रहते। जैसे अक्सर होता है, उम्र के बढ़ने के साथ ही हमारा
Read Moreहमारे इम्तिहान हो गए थे और हम गाँव में घूमते रहते। जैसे अक्सर होता है, उम्र के बढ़ने के साथ ही हमारा
Read Moreहमारी मिडल स्कूल की पढ़ाई आख़री दिनों तक आ पौहंची थी। हमारे टीचर साहेबान अपना सारा धियान हम पर लगाए हुए थे
Read Moreमेरे जैसे इंसान के लिए स्वजीवनी लिखना इतना आसान नहीं है क्योंकि अपनी कहानी लिखने के लिए सचाई लिखनी पड़ती
Read Moreदुनिआ में सब कुछ भूल सकता है लेकिन एक ऐसी चीज़ है जो किसी को नहीं भूलती , वोह है “माँ”।
Read Moreदादा जी की यादें बहुत हैं ,इसी लिए वोह हर घड़ी याद आते रहते हैं। उन को पशुओं से बहुत स्नेह था।
Read Moreमेरे दादा जी बहुत सख्त मिहनती थे। हो सकता है कि उन्होंने बहुत मुसीबतें देखीं थी , इस लिए. यह
Read Moreधर्मराज के दरबार में आज कुछ गड़बड़ थी। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। चित्रगुप्त जी अपनी सभी किताबें छोड़ कर
Read Moreतल्हन गुरदुआरे से बाहिर निकल कर हम उस डेरे की ओर जाने लगे यहां एक सिंह जी लोगों की मुश्किलें
Read Moreमेरी कहानी के काण्ड २६ में मैं ने लिखा था कि जो मैं लिख रहा हूँ , वोह बिखरे हुए माला
Read Moreतरसेम अब अपनी ज़िंदगी में मसरूफ हो गिया था और हमारा मिलन बहुत कम हो चुका था। कभी कभी ही मैं
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