लघुकथा

अमन का राह 

 धर्मराज के दरबार में आज कुछ गड़बड़ थी। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। चित्रगुप्त जी  अपनी सभी किताबें छोड़ कर फर्श पर ही बैठे  थे । यम राज जी  भी आज अपनी बड़ी बड़ी मूंछें नीची किये हुए थे और अपनी  गदा को  कहीं और छोड़ आये  थे जैसे उस के लिए कोई भी काम ना हो । उन  का भैंसा जिस पर वोह सवारी करते  थे , एक कोणे में लेटा  हुआ था. और सभी देवते मुंह लटकाये बैठे थे।
धर्मराज जी जब दरबार में आये तो देख कर हैरान से हो गए। वोह अपने सिंघासन पर बैठ गए और चित्रगुप्त जी  को बोले ,” चितर्गुप्त जी ! यह किया हो रहा है ? यम राज जी  भी आज काम पर नहीं गए  , अब तक तो उस ने बहुत लोगों की जान ले कर आ जाना था, यह ठीक नहीं हो रहा, इस तरह तो सारे संसार का काम ठप हो जाएगा ! ” चित्रगुप्त जी बोले , महाराज ! अब यहां का काम इतना बड़  गिया है कि संभाला नहीं जाता , धरती पर इतनी आबादी बड़ गई है कि हिसाब किताब रखना मुश्किल हो रहा है। अब यम राज जी भी  बोल उठे  और बोले  हाँ महाराज ,” मैं दौड़ा दौड़ा जाता हूँ और दौड़ा दौड़ा आता हूँ और सब से बुरी बात यह है कि जब मैं किसी अमीर  की जान लेने जाता हूँ तो उस के महल जैसे घर में खड़ी बड़ी बड़ी कारों को देखता हूँ तो मुझे शर्म सी आ जाती है। वोह लोग तो मुझे देख नहीं सकते लेकिन मैं जब  कभी बड़ी गाडिओं की तरफ देखता हूँ और  कभी अपने भैंसे की ओर देखता हूँ तो मुझे शर्म सी आ जाती है।
धर्म राज जी खिल खिला कर हंस पड़े और बोले ” याद है ? यही बात तुम ने महाभारत की लड़ाई से  पहले की थी। उस वक्त भी तुम ज़्यादा काम होने की शकायत कर रहे थे। उस वक्त भी मैंने तुझे समझाया था कि जल्दी समय आने वाला है जब तुम इतने बोर हो जाओगे कि काम मांगोगे। और फिर महाभारत की जंग हुई और इतने लोग खत्म हो गए थे कि बारह कोस पर दिया जलता था। तब तुम बहुत दुखी थे क्योंकि काम के बगैर तुझे वक्त काटना मुश्किल हो रहा था।  बस आज फिर वोह ही समय आने वाला है। धरती पर इतने नूक्लिअर बंब बन गए है , इतनी खतरनाक  मिसाइलें बन गई हैं  कि धरती पर वोह ही बचेगा जो इन  लड़ाई झगड़ो को छोड़ कर , अमन  के रस्ते पर चलते  हुए  सच्चा इंसान बनेगा। बहुत कम लोग बचेंगे। तब तुम फिर से उबासीआं लेने लगोगे और काम मांगोगे।
धर्म राज की बात सुन कर सभी मुस्करा उठे और अपने अपने काम में लग गए।

4 thoughts on “अमन का राह 

  • राज किशोर मिश्र 'राज'

    वाह लाजवाब व्यंग के लिए आभार एवम् नमन

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मनमोहन भाई , इस कहानी में मैंने महाभारत के समय और आज के समय के हालात जो महाभारत जैसे हो रहे हैं को मुदेनजर रख कर लिखी है . इस कहानी का नाम मैंने अमन के राह लिखा था जो अकेला राह लिख हो गिया . हिरोशिमा और नागासाकी के बम्ब किसी से भूले नहीं हैं और आज के हथिआरों के मुकाबले में वोह बम्ब खिलौने थे ,अगर लड़ाई आज हो जाए तो किया बचेगा? इस लिए अमन का राह ही अखतिआर करना चाहिए . मेरा मानना है कि जय विजय पत्रिका को पड़ने वाले बहुत सूझवान हैं और कहानी के असली अर्थ समझ जायेंगे.

    • Man Mohan Kumar Arya

      नमस्ते एवं बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय श्री गुरमेल।

  • Man Mohan Kumar Arya

    रोचक कथा। कल के लेख में ईश्वर के नामो पर प्रकाश डालते हुए यह लिखा था कि यह सभी नाम ईश्वर के ही हैं। इन ईश्वर के नामो में धर्मराज एवं यम वा यमराज भी हैं। जो धर्म ही में प्रकाशमान और अधर्म से रहित तथा जो धर्म ही का प्रकाश करता है. इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘धर्मराज ‘ हैं। ईश्वर को यमराज इस लिए कहते हैं कि वह सब प्राणियों के कर्मफल देने की व्यवस्था करता और सब अन्यायों से पृथक रहता है। आपकी कहानी बहुत रोचक होने के साथ हमारे समाज के बहुत से लोग इसे सत्य कथा समझने की भूल कर सकते हैं। वह यह मन सकते हैं कि शायद ऐसा हुआ होगा। पुराणो में भी इसी प्रकार की काल्पनिक कथाएं हैं। सादर धन्यवाद।

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