यादों के कोमल अंकुर
बिखर रहे माला के मोती, जीवन से लाली छिटक रही। विहंग कलरव शिशु बाल कल्पना, अब कठोर धरातल पटक रही।
Read Moreबिखर रहे माला के मोती, जीवन से लाली छिटक रही। विहंग कलरव शिशु बाल कल्पना, अब कठोर धरातल पटक रही।
Read Moreझूठा हूँ मैं! गीत झूठ के गाता हूँ ? सुलग रहे जो दो कण संशय, मेरे अन्तरतम की पीड़ा से।
Read Moreक्यों! आज व्यथा भारी है तुम पर क्या रावण छल के अवशेष दिखे फिर! तू बोल रूद्राक्षी!तू
Read Moreप्रणाम कुलशीर्ष पितामह! आशीष धर्मराज! अनुकंपा है केशव की तुम पर। कहो! याचक बनकर अभीष्ट वर मांगने…. या संशय के
Read Moreखड़ा विचारों के धरातल अक्स देखता उनका अविचल मंद स्मित रेखा से परिवर्तन हो जाता आकार विस्तीर्ण। ढप जाता भूगोल
Read Moreआज संकुचित ज्ञान के घेरे में अवरुद्ध जीवन का विकास पड़ा है कुत्सित सोच के फेरे में! जीवन का
Read Moreबाजार के दर्शन की इच्छा उसी को रखनी चाहिए जिसके पास क्रय शक्ति और आवश्यकता में तालमेल बनाए रखने का
Read Moreप्रणाम कुलशीर्ष पितामह! आशीष धर्मराज! अनुकंपा है केशव की तुम पर। कहो! याचक बनकर अभीष्ट वर मांगने…. या संशय के
Read Moreसृष्टि का रथ कालचक्र के अनुसार चल रहा है। सृष्टि के इस रथ को भला कौन है ऋजु-वक्र चला सकता
Read More