उदासी की नई रेखा!
घिर आती जीवन में पीड़ा मन में मंद चिंता का घेरा पथ विचार उलझ जाता सूझ न पड़ती कोई राह
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Read Moreमैं क्या हूँ!कुछ नहीं! बस! एक मरीज हूँ जिसके साथ भावना नहीं डॉक्टर के लिए पैसा हूँ। समाज का अपराधी
Read Moreबिखर रहे माला के मोती, जीवन से लाली छिटक रही। विहंग कलरव शिशु बाल कल्पना, अब कठोर धरातल पटक रही।
Read Moreझूठा हूँ मैं! गीत झूठ के गाता हूँ ? सुलग रहे जो दो कण संशय, मेरे अन्तरतम की पीड़ा से।
Read Moreक्यों! आज व्यथा भारी है तुम पर क्या रावण छल के अवशेष दिखे फिर! तू बोल रूद्राक्षी!तू
Read Moreप्रणाम कुलशीर्ष पितामह! आशीष धर्मराज! अनुकंपा है केशव की तुम पर। कहो! याचक बनकर अभीष्ट वर मांगने…. या संशय के
Read Moreखड़ा विचारों के धरातल अक्स देखता उनका अविचल मंद स्मित रेखा से परिवर्तन हो जाता आकार विस्तीर्ण। ढप जाता भूगोल
Read Moreआज संकुचित ज्ञान के घेरे में अवरुद्ध जीवन का विकास पड़ा है कुत्सित सोच के फेरे में! जीवन का
Read Moreबाजार के दर्शन की इच्छा उसी को रखनी चाहिए जिसके पास क्रय शक्ति और आवश्यकता में तालमेल बनाए रखने का
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