ग़ज़ल
पागलपन को इज़्ज़त कैसी। नफरत से ये उल्फत कैसी। काबिल अपना लीडर है पर, जनता की है हालत कैसी। दंगा
Read Moreनिर्मल मन रख निर्मल काया। जिसने जैसा सोचा पाया। सब कह डाला शब्द सरल रख, मन में मेरे जो भी
Read Moreदहकां के दुख दर्द का,तनिक नहीं आभास। वोटन खातिर गाँव में , झूठा करें प्रवास। जनता किस बूते करे, इन
Read Moreलफ्फाज़ी होती रही, हुई तरक़्क़ी सर्द। समझ नहीं ये पा रहे, सत्ता के हमदर्द। अबलाओं पर ज़ुल्म कर, बनते हैं
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