मुक्तक/दोहा *हमीद कानपुरी 10/11/2018 हमीद के दोहे लफ्फाज़ी होती रही, हुई तरक़्क़ी सर्द। समझ नहीं ये पा रहे, सत्ता के हमदर्द। अबलाओं पर ज़ुल्म कर, बनते हैं Read More
गीतिका/ग़ज़ल *हमीद कानपुरी 06/11/2018 ग़ज़ल दीप पर्व है दीप जलाओ। मिलकर सारे यार मनाओ। बारूदी को फेक परे अब, ग्रीन पटाखे खूब दगाओ। हिन्दू मुस्लिम Read More
गीतिका/ग़ज़ल *हमीद कानपुरी 06/11/2018 माँ मिल रही सबको ज़िन्दगी माँ से। आदमी आज आदमी माँ से। हर तरफ आज रौशनी़ माँ से। मिल रही मुझको Read More
गीतिका/ग़ज़ल *हमीद कानपुरी 04/11/2018 ग़ज़ल देश हमारा हमको जां से प्यारा है। झण्डा अपना नूर नज़र का तारा है। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई है सबका, Read More