चाह में जिसकी चले थे/गज़ल
चाह में जिसकी चले थे, उस खुशी को खो चुके। दिल शहर को सौंपकर, ज़िंदादिली को खो चुके। अब सुबह
Read Moreचाह में जिसकी चले थे, उस खुशी को खो चुके। दिल शहर को सौंपकर, ज़िंदादिली को खो चुके। अब सुबह
Read Moreऊँची नीची पगडंडी पर चलते जाते पाँव यही हमारा गाँव। पनघट पर सखियों की टोली नयन इशारे हँसी
Read Moreहमसे रखो न खार, किताबें कहती हैं। हम भी चाहें प्यार, किताबें कहती हैं। घर के अंदर घर हो
Read Moreदाँव लगाना, ऐसा भी क्या! खुद बिक जाना, ऐसा भी क्या! दुआ बुजुर्गों की धकियाकर देव मनाना, ऐसा भी
Read Moreक्या कभी सोचा कि चाहें, गीत क्या विद्वान से? आजकल ये सुप्त रहते हैं अँधेरों में सिमटकर क्योंकि
Read Moreबरसात का ये मौसम, कितना हसीन है! बादल-धरा का संगम, कितना हसीन है! जाती नज़र जहाँ तक, बौछार की
Read Moreरेशमी ने बर्तन धोने के लिए अपनी आदत के अनुसार नल की टोटी खोली और धार की लय पर धड़ाधड़
Read Moreछन्न पकैया, छन्न पकैया, कल की पीड़ित नारी, कितनी है खुश आज ओढ़कर, दुहरी ज़िम्मेदारी। छन्न पकैया, छन्न पकैया,
Read Moreमानसूनी बारिश के, क्या हसीं नज़ारे हैं। रंग सारे धरती पर, इन्द्र ने उतारे हैं। छा गया है बागों
Read Moreवो लगातार पाँच दिनों से शोभना के व्यवहार पर गौर कर रहा था। उससे हर पल बतियाने वाली, आते जाते
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