व्यंग्य कविता।
अपने वजूद का जब भी सवाल होता है। वतन का फिर कहां उनको ख्याल होता है। खूब लूटा जिन्होने वतन
Read Moreअपने वजूद का जब भी सवाल होता है। वतन का फिर कहां उनको ख्याल होता है। खूब लूटा जिन्होने वतन
Read Moreमुस्कुराते हैं होंठ और सदा मुस्कुराते रहेंगे। तुम लाख कोशिश कर लो हम न बदलेंगे। कितनी ही बाधाएं आईं राहों
Read Moreचोट जब स्वाभिमान पर लगती है तो, करारा जवाब फिर मिलता है। तुम लाख दगा करो हैं संस्कार तुम्हारे, पर
Read Moreव्यंग्य कविता। बात होती जब वतन की वो सवाल करते हैं। खामोशी से कभी आंखों से कमाल करते हैं। तुम
Read Moreसही को सही और ग़लत को ग़लत कहना है मुझे। ग़लत होते देख के यूं खामोश नहीं रहना है मुझे।
Read Moreसिसक रहे हम छुप छुप कर मगर तुम्हें कहें कैसे। जो अभाव रहा उम्रभर वो सफ़र तुम्हें कहें कैसे। तुम
Read Moreमां सुन सुन के ये समाचार मुझे डर लगता है, तुम हो मेरे पास फिर भी मुझे डर लगता है।
Read Moreतिरंगे को उठाया है तो तुम इसका सम्मान भी करना। दिल में कुछ होंठों पे कुछ हो ऐसा कोई काम
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