#संभल_जाओ#
लड़ रहे हैं सभी अपने अस्तित्व की लड़ाई, जिसे प्रकृति ने बनाया, विभक्त किया सभी को समभाव से साधन सभी,
Read Moreलड़ रहे हैं सभी अपने अस्तित्व की लड़ाई, जिसे प्रकृति ने बनाया, विभक्त किया सभी को समभाव से साधन सभी,
Read More#मन_की_गाँठ# (कोरोना इफेक्ट) साठ साल की सोमवती जी बेचैनी से करवट बदल रही थीं, कभी उठती बाथरूम जातीं कभी ग्लास
Read Moreअपने ही हाथों छले जा रहे हैं। जाने कहाँ हम चले जा रहे हैं।। टूटी सदा ख्वाहिशें ही हमारी, आँखों
Read Moreक्या है तेरे मेरे दरमियां? कुछ तो है ऐसा तेरे मेरे दरमियां, जो परिभाषित नहीं ना ही हो पाएगा कभी।
Read Moreपरिपूर्णता हां! हो तुम हृदय में , जैसे मृग के कुंडल में स्थित कस्तूरी, आभामंडल सा व्याप्त है तुम्हारे अस्तित्व
Read Moreउलझनें कम नहीं जिंदगी की बस बहुत हुआ अब इसे घटाओ ना, थक जाएं जो कभी हारकर तुम आकर गले
Read Moreचले चलना चले चलना कभी कमजोर मत पड़ना बिछे हों राह में कांटे उन्हें तुम रौंद के चलना। चले चलना
Read More“आत्म निर्णय” जिंदगी के धूप-छांव में गिरते-पड़ते उठते-सम्भलते बढ़ते रहे रुके नहीं क्योंकि जो भी हो जिंदगी खूबसूरत है हाँ!
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