मुक्तक
इतिहास की परतें खुलेंगी धीरे धीरे, सत्य से धूल की चादर हटेगी धीरे धीरे। ली है अभी अंगड़ाई हिन्दू ने
Read Moreछोड़कर गाँव के घर, दौड़ते थे शहर को, हरे भरे खेतों को तज, दौड़ते थे शहर को। न कहीं चौपाल
Read Moreमुजफ्फरनगर संस्कार भारती–मुजफ्फरनगर के द्वारा ‘‘आराधना’’ कार्यक्रम आयोजित किया गया। संस्कार भारती साहित्य एवं कला को समर्पित राष्ट्रीय स्वयं सेवक
Read Moreन बेटी ख़राब है और न बेटा ख़राब है, कुछ ख़राब है तो, नज़रिया ख़राब है। बाँटते हैं बच्चों को,
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