मेरी कविता का सारांश
वो मुझे देकर अपनी आत्मा का महादान निशा -दिवस करती मेरा ध्यान फिर भी मैं कहता उससे क्या तुम्हें हैं
Read Moreवो मुझे देकर अपनी आत्मा का महादान निशा -दिवस करती मेरा ध्यान फिर भी मैं कहता उससे क्या तुम्हें हैं
Read Moreतुम छूटी हुई वह एक बिंदु हो जिसके बिना पूरी कविता मुझे अधूरी सी लगती हैं तुम गायब वह एक
Read Moreमैं हूँ सीमित नदी तुम हो प्यार का असीमित सागर खुश हूँ मैं … तुम्हे पाकर तुम तक पहुँचने
Read Moreप्रकृति का यहीं हैं नियम प्यासा रह जाए जीवन लहरों के संग आये जल घुल न पाए कभी पत्थर सुख
Read Moreछिटकी हैं चांदनी अम्बर में सितारों के नूर से भरी बह रही हैं एक और मंदाकनी बादलों की ओट
Read More