कविता

नाद कल -कल

प्रकृति का यहीं हैं नियम
प्यासा रह जाए जीवन
लहरों के संग आये जल
घुल न पाए कभी पत्थर
सुख आये तो लगे शीतल
दुःख आये तो वहीं पाषाण
कहें छूना मुझे अभी मत
मैं हूँ बहुत गरम
मिलन की आश लिये
ह्रदय में प्यास लिये
लौट जाते –
लहरों के भी अधर
इसी तरह ….
संयोग की इच्छा लिये
विरह के अतृप्त जीवन कों
जीता हैं …
हर ठोस ..हर तरल
इस सत्य का साक्षात्कार लगता
मनुष्य कों ..
कभी अति जटिल
और कभी बहुत सरल
इसीलिए रहता हैं
समय के अंतराल के अनुभव में
एक ब्याकुल एकांत
हर चेतना में …अविरल
इस मध्यांतर के मौन की स्मृति में
गूंजता हैं हरदम
एकसार प्रवाहित नाद …कल -कल

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

4 thoughts on “नाद कल -कल

Comments are closed.