लघुकथा – मन की आंखें
मैं 16 साल की बाली उम्र में दो विद्यालयों की फाउंडर प्रिंसिपल रही हूं. उसके बाद लगभग 16 सरकारी विद्यालयों
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Read Moreजाता हुआ साल बहुत ले-देकर जाता है,सुख-दुःख के झूले में हमें झूला झुलाता है,2023 में भी उसकी यही तस्वीर दिखती
Read Moreवीरों की वीरता का प्रतीक है विजय दिवस,पाक की करारी हार का सूचक है विजय दिवस,93,000 पाक-सैनिकों ने आत्मसमर्पण कर
Read Moreबीत गया अतीत, वर्तमान की खिड़की खोल,यह भी चलता जाएगा, भविष्य को दे अपना रोल,सफर जिन्दगी का गुजरता रहा यों
Read Moreमुसाफिर हूँ यारो, हकीकत दुनिया की जानता हूं,मंजिल खुद चलकर पास नहीं आती, यह भी मानता हूं,तकदीर के भरोसे बैठने
Read Moreअपनी हिम्मत के लिए सरकार द्वारा पुरस्कृत होने की खबर से सिल्वी रोमांचित थी. हिम्मत से काम लेकर सिल्वी सबकी
Read Moreनिहालू प्लंबर वाशरूम का नल ठीक करने आया था. दरवाजा खोलने वाली वैशाली को वह एकटक देखता ही रह गया.“आइए.”वह
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