कविता – कोरे पन्ने
कुछ दिनों से ये दिल कुछ कहता है न सुनता है सुस्त सुस्त सी लेखनी किसी कोने से चुपचाप बाट
Read Moreकुछ दिनों से ये दिल कुछ कहता है न सुनता है सुस्त सुस्त सी लेखनी किसी कोने से चुपचाप बाट
Read Moreइक ज़रा सी ख्वाहिश को लगा कर गले कर लेंगे हम बेसाख्ता ख्वाबों और ख्यालों से गुफ्तगू उड़ जाएंगे दूर
Read Moreउनिंदी पलकों में , जागे से ख्वाब तेरे रातों में जुगनू से , दमकते अहसास मेरे क़तरा क़तरा दे रहा सदाएं
Read More‘‘ तुम सुधीर भैया से बात क्यूं नहीं करते हो विनय, मैं तो तंग आ चुकी हूं सविता भाभी के
Read Moreठहरी हुई इक झील में,हलचल मचा गया कोई सोए से थे अरमां मेरे,ख्वाब जगा गया कोई उसकी गहरी सी आंखों
Read Moreबरखा की झरमर बूंदो की रूनझुन सी आहट सुन कर यूं लगा जैसे सुरीले से साज़ पर मीठी सी तान
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