कहानी

कहानी – मुक्ति

‘‘ तुम सुधीर भैया से बात क्यूं नहीं करते हो विनय, मैं तो तंग आ चुकी हूं सविता भाभी के रोज रोज के झगड़ों से ’’ मेघना परेषान होकर अपने पति विनय से कह रही थी।

‘‘ तुम तो जानती हो सुधीर भैया कितना स्नेह रखते हैं मुझपे, सोचता हूं कहीं मेरी बात उनका दिल न दुखा दे इसलिए चुप रहता हूं फिर तुम पढ़ी लिखी हो अपने हक अच्छी तरह जानती हो, इस घर पर जितना हक उनका है उतना ही तुम्हारा भी है सविता भाभी चाहे जो कर ले वो हमें इस घर से नहीं निकाल सकती ’’ विनय ने कहा।

सुधीर और विनय की उम्र में ज्यादा र्फक नहीं था इसलिए दोनो में खूब बनती थी और साझा बिजनेस होने के कारण उन दोनो ने मिल कर बड़े अरमानों से घर बनवाया था पर अब इस घर को लेकर सुधीर की पत्नि सविता के मन में लालच आ गया था उसे लगता था कि बड़ी होने के कारण पहला हक उसका है और वो जब चाहे अपनी देवरानी को घर से निकाल सकती है। सारे दिन मोहल्ले की औरतों के बीच बैठ कर अपनी देवरानी की बुराइयां करना और फिर घर आकर झगड़ा करना बस यही काम था उसका और मोहल्ले की औरतें भी कम नहीं थी वो सब उसे उकसाती थी कि अपनी देवरानी को घर से निकाल दो, दिन पर दिन वो और झगड़ालू होती जा रही थी। जब तक वो बाहर रहती घर में षांति रहती पर घर आते ही वही झगड़ा करना, मेघना के हर काम में मीनमेख निकालना और किसी न किसी तरह उसे परेषान करना षुरु कर देती उसे लगता था मेघना परेषान होकर चली जाएगी पर पढ़ी लिखी मेघना अच्छी तरह जानती थी कि जितना हक जेठानी का है घर पर उतना ही उसका भी है। एक दिन तो सविता ने उसे खुलेआम धमकी भी दे डाली कि वो जल्द ही उसे चोटी पकड़ कर घर से निकाल देगी इस पर मेघना ने भी कह दिया कि ‘‘ भाभी, आप चाहे जो कर लो, मैं आपकी इन गीदड़ भभकियों से डरने वाली नहीं माना कि मेरा साथ कोई नहीं देगा पर आपके लिए मैं अकेली काफी हूं और एक बात, मुझे आपकी ये चुनौति स्वीकार है अब तो किसी भी कीमत पर मैं यहां से जाने वाली नहीं ’’। उसके ऐसा कहने पर सविता को लगा अब तो ये उल्टा जवाब भी देने लगी है उसे उसकी सत्ता छिनती हुई सी लगी। वैसे सविता के इस र्ककष और हिटलरी स्वभाव के पीछे उसकी सास विमला और ससुर आलोकनाथ का बहुत बड़ा हाथ था उन लोगों ने हमेषा से र्सिफ सविता की ही सुनी थी और मेघना से कभी नहीं पूछा सच क्या है क्योंकि सविता चापलूसी और में भी आती है पर अगर कोई जानबूझ कर अपनी आंख पर पट्टी बांध ले तो उसे क्या कहें। विनय अपने भात्र प्रेम के कारण चुप रहते और मेघना को जोर जोर से चिल्लाना आता नहीं था इसलिए जब भी सविता झगड़ा करने लगती वो बिट्टू को लेकर अपने कमरे में चली जाती। एक दिन तो सविता ने हद ही कर दी मेघना में बिट्टू की दूध की बोतल उबाल कर रखी थी और दूध ठंडा करने रखा तो सविता ने वो दूध फेंक दिया और दूध का भगोना ले जाकर अपने कमरे में रख दिया। मेघना तिलमिला कर रह गई आखिर सहनष्क्ति की भी एक हद होती है इस बार वार उसके बच्चें पर था इसलिए मेघना ने सोचा अब तो सामना करना ही होगा। वो जोर जोर से सविता के कमरे का दरवाजा मुक्ति पीटने लगी जब सविता ने दरवाजा खोला, मेघना कमरे में जाकर दूध का भगोना उठाने लगी तो सविता ने ठोकर मार कर सारा दूध गिरा दिया और बोली ‘‘ जब तक तू यहां से नहीं जाएगी, यही सब चलेगा अगर अपनी खैर चाहती है तो चली जा यहां से ’’ ‘‘ तो फिर भाभी आप भी सुन लो आपकी ये हरकतें एक दिन आपके लिए ही दुखदाई बन जाएंगी क्यांकि अब मैं चुप नहीं रहूंगी ’’ मेघना की आखें अब अंगारे बरसा रही थीं जिसे देख कर एकबारगी सविता भी चकरा गई। ‘‘ अरे अपनी नहीं तो अपने बच्चे की फिक्र कर तेरी वजह से वो भूखा मरेगाा ’’ सविता तुनककर बोली। ‘‘ उसकी चिंता आप मत करो भाभी अभी उसकी मां जिंदा है और मेरे होते हुए मेरा बच्चा कभी भूखा नहीं मरेगा। दोनों भाइयों के घर आते ही सविता जोर जोर से चिल्लाने लगी ‘‘ अरे कोई मुझे इस चुड़ ैल से बचाओ देखो आज इसने मेरे कमरे में दूध फैलाया है कल न जाने क्या करेगी कहीं मुझे और मेरे बच्चों को ही न मार डाले ’’ ‘‘ इस कलमुंही से कह दो यहां से चली जाए नहीं तो अच्छा नहीं होगा’’ सविता इतनी जोर जोर से चिल्ला रही थी कि घर के बाहर लोग आकर खड़े हो गए। सुधीर और विनय अच्छी तरह जानते थे कि ये सब सविता का किया धरा है और रोज रोज के झगड़ों से दोनो भाई तंग आ चुके थे इसलिए बड़े होने के नाते सुधीर ने ये फैसला लिया कि मेघना की कोई गलती नहीं इसलिए वो ही अपनी पत्नि ओर बच्चों के साथ कहीं किराए के मकान में चले जाऐंगे। उनके इस फैसले पर सविता कुड़ कर रह गई पर पति के खिलाफ बोलने पर उसने जो सास ससुर के सामने सती सावित्री वाली छवि बनाई थी वो बिगड़ जाएगी इसलिए चुपचाप जाने को राजी हो गई पर जाते जाते भी अपनी विद्र ुप मानसिकता की छाप छोड़ कर गई। वो इस र्षत पर जाने को राजी हुई कि उसका कुछ सामान उसके कमरे में रहेगा और वो उस कमरे का ताला लगा कर चाबी अपने पास रखेगी। वो अच्छी तरह जानती थी इस तरीके से वो जाने के बाद भी मेघना को परेषान कर सकेगी क्योंकि घर के पीछे वाली गैलरी का दरवाजा उसके कमरे से खुलता था और छत की नाली गैलरी मैं आती थी ओर अगर गैलरी की सफाई न हो तो नाली के मुंह पर कचरा फंस जाने की वजह से बारिष का सारा पानी घर में घुस जाता था और तेज बारिष में ज्यादा परेषानी होती थी सारा घर पानी से भर जाता था। सविता ने एक बार भी नहीं सोचा कि ऐसी स्थिति में मेघना अपने छोटे से बच्चे को लेकर कितनी परेषान होगी पर उसकी जिंदगी का मकसद ही मेघना को परेषान करना था। घर छोड़ने के बाद सविता ने सारे रिष्तेदारों में ये बात फैला दी कि उसकी देवरानी ने उसे घर से निकाल दिया अब तो वो सास ससुर की नजरों में देवी बन चुकि थी और सारे रिष्तेदारों में मेघना बदनाम हो चुकि थी इसलिए जब भी वो किसी समारोह में जाती लोग उसे ताने मारने लगते इसलिए उसने किसी भी समारोह में जाना बंद कर दिया। उस दिन मेघना बिट ्टू को सुलाकर किचन में खाना बनाने गई तो उसी वक्त तेज बारिष षुरु हो गई और देखते ही देखते तेजी से घर में पानी घुसना षुरु हो गया ऐसे में मेघना क्या करती पानी तो बहुत तेजी से अंदर आ रहा था उसने जमीन पर बिछे गद्दे को सोफे पर पटका और जल्दी जल्दी जैसे तैसे खाना बनाकर वो बिट्टू के पास पलंग पर चढ़ कर बैठ गई और बारिष के बंद होने तक वहीं बैठी रही। जब बारिष बंद हुई तब धीरे धीरे घर की बाकि नालियों से पानी अपने आप बाहर जाने लगा। विनय घर पहुंचे तो सारा माजरा समझ गए उन्होने मेघना से कहा ‘‘ तुम चिंता मत करो कल भैया से कह कर कमरे की चाबियां ले आउंगा सफाई होने के बाद पानी भीतर नहीं आ सकेगा ’’ ‘‘ ठीक है विनय’’ मेघना बिट्टू के मुंह में दूध की बोतल देते हुए बोली। पर सविता जैसी बदमाष औरत से चाबी निकलवाना इतना भी आसान नहीं था जब सुध्ीार ने उससे चाबी मांगी तो वो तुनककर बोली मुक्ति ‘‘ तुम क्या चाहते हो ये चाबी लेकर वो सारे घर की मालकिन बन जाए और मैं हाथ पर हाथ धरे बैठी रहूं’’ ‘‘ ये कैसी बातें कर रही हो तुम तुम्हें अच्छी तरह पता है बारिष में नाली की सफाई न हो सारा पानी अंदर आ जाता है तुम ऐसा करो चाबी दे दो मैं अपने सामने सफाई करवा कर चाबी वापस ले आउंगा ’’ पर सविता को समझाना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा था उसने चाबी सुधीर को देने के बजाए बाहर ले जाकर घर से लगे कुएं में फेंक दी और सुधीर देखते ही रह गए। अगले दिन विनय ने चाबी मांगी तो सुधीर ने उससे माफी मांगते हुए उसे सारा किस्सा सुनाया ‘‘ विनय मुझे माफ कर दे भाई मैं चाबी नहीं ला सका ’’ ‘‘ कोई बात नहीं भैया आप क्यूं दुखी होते हो अब मुझे कोई और उपाय करना होगा ’’ विनय ने कहा। आज भी आकाष बादलों से घिरा हुआ था और कभी भी तेज बारिष षुरु हो सकती थी, विनय सोच में डूबा था उसे मेघना और बिट ्टू की चिंता हो रही थी उसे चिंता से घिरा देख कर सुधीर ने उसे कहा ‘‘ विनय यूं सोचने से कुछ नहीं होगा बेहतर है तुम अभी घर जाओ और कुछ उपाय करो देखो बादल कितने चढ़े हैं जो बारिष षुरु हुई तो मेघना और बिट्टू परेषान होंगे’’ ‘‘ आप सही कह रहे हो भैया मैं अभी जाता हूं’’ कह कर उसने अपनी बाइक उठाई और तेजी से घर की ओर रवाना हो गया रास्ते में ही बूंदा बांदी षुरु हो गई थी वो जल्दी जल्दी घर पहुंचा, घर पहुचते ही मेघना ने कहा ‘‘ अच्छा हुआ तुम चाबी लेकर आ गए विनय देखे कैसा बरसात चढ़ी है अब जल्दी से मुझे चाबी दो तो मैं ताला खोलकर सफाई कर दूं ’’ ‘‘ चाबी?? कहां है चाबी मेघना, सविता भाभी ने कूंए में फेंक दी ’’ विनय हताष होते हुए बोला ’’ पर तुम चिंता मत करो मैं तुम्हें कभी परेषान नहीं होने दूंगा ’’ ये कह कर विनय छत पर गया और छत से नीचे आने वाली नाली के मुंह पर एक ईंट लगाकर आ गया फिर नीचे आकर बारिष का इंतजार करने लगा जब बारिष षुरु हुई तो ईंट लगी होने की वजह से नीचे आने वाले पानी का बहाव कम था और धीरे धीरे आने की वजह से पानी घर में नहीं घुस रहा था। ये समस्या तो सतही तौर पर ही सही पर सुलझ गई थी बारिष का मौसम भी चला गया और हल्की हल्की र्सदी की षुरुआत हो गई थी। कुछ दिनों से मेघना को लग रहा था कि सविता के कमरे से कुछ खटरपटर की आवीजें आ रही हैं उसने विनय को ये बात बताई तो एकबार उसे यकीन नहीं हुआ पर र्सदियो के दिनो में पंखे बंद होने की चजह से हल्की सी आवाजें भी सुनाई देती हैं उस रात विनय ने भी दूसरे कमरे से आती हुई आवाज सुनी और उसने अनुमान लगाया कि बंद कमरे में चूहों के सिवाय और कोई नहीं घुस सकता। उसने ये बात सुधीर को बताई और उसने सविता को, गांव से आलोकनाथजी और विमला भी आ गए विमला ने कहा ‘‘कहां है चाबी दरवाजा खोलो जल्दी ’’ ‘‘ चाबी तो आपकी लाडली बहू ने कूंए में फैक दी मां ’’ सुधीर ने सविता की ओर गुस्से से देखते हुए कहा और फिर कमरे का ताला तोड़ा गया तो सारे कमरे में चूहों की लींडियां पड़ी थीं औ सविता को दहेज में मिली अलमारी और ड्रेसिंग टेबल इसके अलावा कमरे में जो भी समान था सब चूहों ने गंदा कर दिया था ये सब देख कर सविता की चीख निकल गइ्र वो चीखते हुए बोली ‘‘ हे भगवान सत्यानाष जाए इन मरे चूहों का मेरा सारा सामान खराब कर दिया जरुर इस चुड़ ैल ने कोई टोना टोटका किया होगा नहीं तो ये चूहे भीतर केसे आते???’’ ‘‘ बस करो सविता बहू आज तक हम सब तुम्हारी मनमानियों और ज्यादतियों को देख कर भी चुप रहे ये हमारी गलती थी कि हमने कभी मेघना का साथ नहीं दिया पर जिसका कोई नहीं होता उस पर भगवान की कृपा होती है, तुम अच्छी तरह से जानती थीं तुम्हारे जाने के बाद बारिष में मेघना बहू को परेषानी होगी फिर भी तुमने चाबी नहीं दी और तो और चाबी कूएं में फेंक दी, तुम्हारी सास की वजह से में भी चुप रहा पर जिसके मददगार भगवान हों उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता’’ ‘‘ ये देखो चूहे पहले वाषबेसिन के पाइप को काटकर बाथरुम मे घुसे फिर बाथरुम के दरवाजे में छेद करके कमरे में आ गए ’’ विनय ने कहा। मुक्ति ‘‘ ये तो एक तरह से चमत्कार ही है सचमुच मेघना बहू पर ईष्वर की कृपा है ’’ विमला ने मेघना के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा ओर बिट ्टू को गोद में लेकर प्यार करने लगी। सविता का ढ़ोंग और चापलूसी का साम्राज्य अब ध्वस्त हो चुका था इसलिए उसने अपना बाकि बचा हुआ सारा सामान समेटा और कमरा पूरी तरह खाली कर दिया। सबके जाने के बाद विनय ने मेघना से कहा ‘‘ छोटे छोटे चूहों ने कमाल कर दिया मेघना अब तुम्हें कभी बारिष में परेषान नहीं होना पड़ेगा’’। ‘‘ वो तो ठीक है विनय पर ये क्या अच्छा लगता है भैया भाभी किराए के मकान में रहें और हम घर के मकान में’’ ‘‘ हमने उन्हें कभी घर से जाने के लिए नहीं कहा मेघना और फिर भाभी के दिल में तुम्हारे लिए जलन ओर नफरत के सिवा कुछ नहीं है इसलिए उनके लिए दिल छोटा मत करो ’’

समाप्त

लीना खत्री

लीना खत्री , c/of- चंद्रप्रकाश खत्री , 91- प्रगति नगर कोटड़ा, पुष्कर रोड अजमेर , राजस्थान-305001 , फोन- 7073891795 , मेल-leenakhatri80@gmail.com

One thought on “कहानी – मुक्ति

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कहानी !

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