“पंक्तिका छंद”
शिल्प~ [रगण यगण जगण गुरु] (212 122 121 2) 10वर्ण प्रति चरण, 4 चरण,2-2 चरण समतुकांत प्राण नाथ जो आप
Read Moreशिल्प~ [रगण यगण जगण गुरु] (212 122 121 2) 10वर्ण प्रति चरण, 4 चरण,2-2 चरण समतुकांत प्राण नाथ जो आप
Read Moreपरिंदों का बसेरा होता है प्रतिदिन जो सबेरा होता है चहचाहती खूब डालियाँ हैं कहीं कोयल तो कहीं सपेरा होता
Read Moreजय हो झिनकू भैया की। भौजी की अँगुली चाय की खौलती तपेली से सट गई, तो ज़ोर से झनझना गई
Read Moreअब तो गिरिवर दरशन, चित हमारौ मनवा हरसत विहरत, हरि निहारौ। पहुना सम दिखत सबहिं, पग पखारौ हम सेवक तुम
Read Moreमैया का पूजन करें, निशदिन आठो याम सूर्य उपासन जल मही, छठ माँ तेरे नाम छठ माँ तेरे नाम, धाम
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