गीतिका/ग़ज़ल

“गज़ल”

जा मेरी रचना तू जा, मेले में जा के आ कभी

घेरे रहती क्यूँ कलम को, गुल खिला के आ कभी

पूछ लेना हाल उनका, जो मिले किरदार तुझको

देख आना घर दुबारा, मिल मिला के आ कभी॥

शब्द वो अनमोल थे, जो अर्थ को अर्था सके

सुर भुनाने के लिए, डफली हिला के आ कभी॥

छंद कह सकती नहीं, तो मुक्त हो जा जानेमन

जा नए परिवार को, नजरें पिला के आ कभी॥

हो सके तो मापनी, मुखड़े की कर लेना ठहर

काफ़िया मत भुलना,  मक्ता झुला के आ कभी॥

व्यर्थ न फरियाद करना, कि गज़ल सी तूँ नहीं

मिसरे में होती जान है, उसको जिला के आ कभी॥

लिख न पाता है रुबाई,  “गौतम” तेरे नाम की

ले चला अपनी बहर, नगमे सुला के आ कभी॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ