“दोहा”
खड़ा हुआ हूँ भाव ले, बिकने को मजबूर बोलो बाबू कित चलू, दिन भर का मजदूर॥-1 इस नाके पर शोर
Read Moreअभी अभी सुना कि एक और हृदयविशालिता की देवी बिछलाकर अपने ही आँगन में गिर गई। टूट गई उसकी वो
Read Moreगीत काव्य, मात्रा भार- 14, नदिया किनारे गाँव रे कहीं ऊँच कहीं खाँव रे चकवी चकवा गुटुरावें झुंगी झाड़ी झनकाव
Read Moreमुश्किल तो होती डगर, चली हुई आसान कठिन मान लेते जिसे, आलस में नादान बड़ी चूक करते सदा, अपनी मंजिल
Read Moreमाँ, बाप, पत्नी, भाई-बहन व बच्चों के साथ देश रो रहा है, शहीदों के पार्थिव को कंधे पर उठाए, साथ
Read More“दोहे” गंगोत्री यमुनोत्री, बद्रीनाथ केदार चारोधाम विराजते, महिमा शिव साकार॥-1 माँ पार्वती ने दिया, अपना घर उपहार इस बैकुंठ विराजिए,
Read Moreउड़ा दिए उन परिंदों को उनकी ही डाल से एक छोटे से कंकर देकर झूलते थे जो घोसले बहुत पुराने
Read Moreविनय करूँ कर जोरि मुरारी, पाँव पखारो जमुन कछारी नैना तरसे दरस तिहारी, गोकुल आय फिरो बनवारी॥-1 ग्वाल बाल सब
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