गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

समांत- अन, पदांत- तुमको मुबारक हो, मात्र भार- 28

 

सितारों से सजी रौनक सजन तुमको मुबारक हो

बना हमराज यह सेहरा अमन तुमको मुबारक हो

उठा कर देख लो अब तो निगाहों से नजारों को

अटल विश्वास हो जाए बहम तुमको मुबारक हो॥

 

गिराकर चल दिये चिलमन पकड़कर डोर हाथों से

बुनी किस चाह में रसरी बलन तुमको मुबारक हो॥

 

चलो अच्छा हुआ हम भी किनारे आ गए खुद ही

रुकी मंझदार में कश्ती पवन तुमको मुबारक हो॥

 

पता होता कि ये लंगर समय पर काम आते तो

बना लेते कई मंजर मदन तुमको मुबारक हो॥

 

चली नदियां पहाड़ों से साथ घिसते चले पत्थर

उठी है घास झुककरके चमन तुमको मुबारक हो॥

 

तराजू झुक नहीं सकता तू गौतम प्यार को तौले

नजर पलड़े बदलती है वजन तुमको मुबारक हो॥

 

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ