“दोहे”
गेहूं की ये बालियाँ, झुकती अपने आप रे चिंगारी चेतना, अन्न जले बहु पाप॥-1 अपना पेट भरण किए, येन केन
Read Moreयोगी योग करता है ज्ञान अर्जित करता है। देश, दुनिया, समाज और मानव को अपना अर्जन अर्पित करता है। भोगी
Read Moreपथ गरल धरे लिपटे भुजंग, खिले वादियों में नए रंग फुफकार रहे खुद को मतंग, मतिमंद चंद बिगड़े मलंग…… प्रीति
Read Moreचाहत अपनों से रखें, नाहक घेरे गैर साथी अपने पाँव हैं, हिला डुला के तैर हिला डुला के तैर, मीन
Read More