“कुंडलिया”
चाहत अपनों से रखें, नाहक घेरे गैर
साथी अपने पाँव हैं, हिला डुला के तैर
हिला डुला के तैर, मीन बिन पाँव मचलती
गहरे जल विश्राम, न छिछले धार उछलती
गौतम मांझी मान, नाव नहि होती आहत
नाविक की पहचान, जान ले तल की चाहत॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी