“दोहे”
पशु पंक्षी की बोलियाँ, समझ गया इंसान निज बोली पर हीनता, मूरख का अभिमान।।-1 विना पांव चलते रहे, प्रीति
Read Moreहम यूँ न आदर अदाया करते है बड़ हुनर सम्मान समाया करते है अजीब ख़ुशी मिलती है सआदर में पराए
Read Moreचित्र अभिव्यक्ति ( पद्य या गद्य विधा ) पुत्तर खुश पंजाब दा, शत श्री श्रीयाकाल आइ लोहड़ी झूमती, भांगड़ा खुश
Read More“बाग़ बिन पर्यावरण” बुजुर्गों ने अपने हाथों से बाग़ लगाया था गाँव के चारों ओर, याद है मुझे। मेरा गांव
Read Moreगंगा माँ की धार है, जीवन का आधार दोनों बूढ़े हो गए, मैं मेरी पतवार मैं मेरी पतवार, सुबह से
Read Moreशीर्षक– तीर, कूल, कगार, तट, किनारा कान्हा जल यमुन तीर, तट सखिया अधीर नाव लगे काहि किनार, घुमत बनिके फकीर
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