कविता – नारी और भाग्य
मन आशा की मूरत जिसका आज निराशा छाई कैसे | दिल में इतना प्यार संजोए फ़िर ये नफ़रत पाई कैसे
Read Moreमन आशा की मूरत जिसका आज निराशा छाई कैसे | दिल में इतना प्यार संजोए फ़िर ये नफ़रत पाई कैसे
Read Moreउमड़ता – घुमड़ता जहन में है प्रश्न आतंक के जहर से , विशाक्त होता जन-जीवन , जुनून ; सब कुछ
Read Moreपुलकित है प्यासा मन नाच उठा अंतर मन बरसे यह सावन घन उमड़ घुमड़ बरसे|| मेघों से याचक बन देखो
Read More(१) प्रकृति के क्षरण से तड़पती है धरती | नयन नीर सूखा सिसकती है धरती | न वन हैं घनेरे
Read Moreरंग – बिरंगे सुंदर कोमल , लहराते बलखाते फूल | बाग – बगीचे की शोभा को हरदम खूब बढाते फूल
Read Moreचंदा मामा रूप तुम्हारा मुझे लुभाया करता है | घटना- बढना निश दिन तेरा मुझ में अचरज भरता है |
Read Moreकुछ महीनों से छवि और निलय आर्थिक तंगी के बुरे दौर से गुजर रहे थे. हर तरफ़ अंधेरा ही अंधेरा
Read Moreमधु सूदन मुरली धर मोहन , बृज को काहे बिसराय दियो | मन प्राण निकाल चले मथुरा , यह देह
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