Author: *मनमोहन कुमार आर्य

धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ऋषि दयानन्द ने वेदोद्धार सहित अन्धविश्वास एवं कुरीतियों को दूर किया था

ओ३म् प्रकाश करने की आवश्यकता वहां होती है जहां अन्धकार होता है। जहां प्रकाश होता है वहां दीपक जलाने वा

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

देवयज्ञ अग्निहोत्र करने से मनुष्य पाप से मुक्त व सुखों से युक्त होते हैं

ओ३म् मनुष्य चेतन प्राणी है। चेतन होने के कारण इसे सुख व दुख की अनुभूति होती है। सभी मनुष्य सुख

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वेद के सिद्धान्तों एवं मान्यताओं का प्रचारक प्रमुख ग्रन्थ सत्यार्थप्रकाश

ओ३म् वेद सृष्टि के आदि ग्रन्थ होने सहित ज्ञान व विज्ञान से युक्त पुस्तक हैं। वेद जितना प्राचीन एवं सत्य

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वेदों के प्रचार से अविद्या दूर होने सहित विद्या की प्राप्ति होती है

ओ३म् मनुष्य अल्पज्ञ प्राणी है। परमात्मा ने सब प्राणियों को स्वभाविक ज्ञान दिया है। मनुष्येतर प्राणियों को अपने माता, पिता

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मनुष्य को अपने सभी शुभ व अशुभ कर्मों का फल भोगना पड़ता है

ओ३म् हमारा मनुष्य जन्म हमें क्यों मिला है? इसका उत्तर है कि हमने पूर्वजन्म में जो कर्म किये थे, उन

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

“हमारा यह संसार इससे पहले अनन्त बार बना व नष्ट हुआ है”

ओ३म् हम इस संसार में जन्में हैं व इसमें निवास कर रहे हैं। हमारी आंखें सीमित दूरी तक ही देख

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ईश्वर की उपासना से उपासक को ज्ञान व ऐश्वर्य प्राप्त होते हैं

ओ३म् मनुष्य जब किसी कार्य को उचित रीति से ज्ञानपूर्वक करता है तो उसका इष्ट व प्रयोजन सिद्ध होता है।

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

ब्रह्मचर्यादि चार आश्रमों में गृहस्थ आरम्भ ही ज्येष्ठ है

ओ३म् वैदिक धर्म वह धर्म है जिसका आविर्भाव ईश्वर प्रदत्त ज्ञान, ‘वेद’ के पालन व आचरण से हुआ है। वैदिक

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

वेदज्ञान सृष्टि में विद्यमान ज्ञान के सर्वथा अनुकूल एवं पूरक है

ओ३म् हमारी सृष्टि ईश्वर की रचना है। यह ऐसी रचना है जिसकी उपमा हम अन्य किसी रचना से नहीं दे

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धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

देश में गुरुकुल होंगे तभी आर्यसमाज को वेद प्रचारक विद्वान मिल सकते हैं

ओ३म् परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ में वेदों का ज्ञान दिया था। इस ज्ञान को देने का उद्देश्य अमैथुनी सृष्टि

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