पुरुषार्थ और प्रारब्ध
ओ३म् हमारा जीवन प्रारब्ध की नींव पर बना है और जीवन को सार्थक करने के लिए हमें पुरुषार्थ करना है।
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Read Moreओ३म् दो पैर वाले शरीरधारी प्राणी को मनुष्य कहते हैं। ज्ञान व कर्म की दृष्टि से इसके मुख्य दो भेद
Read Moreओ३म् हम ऋषि दयानन्द के भक्त और अनुयायी अपने आप को आर्य कहते हैं जबकि हमारा जन्म एक पौराणिक परिवार
Read Moreओ३म् वैदिक धर्मी आर्यों के पांच दैनिक कर्तव्य हैं जिन्हें ऋषि दयानन्द जी ने भी पंचमहायज्ञ नाम से स्वीकार किया
Read Moreओ३म् वेद एवं वैदिक ग्रन्थों का अध्ययन करने पर ईश्वर, जीवात्मा व प्रकृति का स्वरूप स्पष्ट होता है। ईश्वर इस
Read Moreओ३म् हम जहां रहते हैं वह पृथिवी का एक छोटा सा भाग है। हमारी पृथिवी की ही तरह अनेक व
Read Moreओ३म् ऋषि दयानन्द के ग्रन्थों में अनेक स्थानों पर आप्त विद्वान पुरुष शब्द का प्रयोग हुआ है। स्वाभाविक है कि
Read Moreओ३म् सारा संसार इस तथ्य से परिचित है कि वेद वैदिकधर्म का प्रमुख धर्मग्रन्थ होने सहित संसार का आदि ग्रन्थ
Read Moreओ३म् ऋषि दयानन्द को वेदों व सम्पूर्ण वैदिक साहित्य का तलस्पर्शी ज्ञान था। वह उच्च कोटि के सफल योगी थे
Read Moreओ३म् धार्मिक संस्था उसे कहते हैं जिससे मनुष्य के सभी कर्तव्यों का ज्ञान हो व वह उसका युक्ति तर्क व
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