Author: डॉ. मुश्ताक़ अहमद शाह

कविता

मुसाफ़िर.(परदेशी) उसको यक़ीन कितना था,

वक़्ते जुदाई मुस्कुरा कर कह गया वो शख़्स मिलेंगें फ़िर कभी,अजनबी तो था, दो पल का मुसाफ़िर,(परदेशी) उसको यक़ीन कितना

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