कितना दुष्कर है अश्लील लिखना !
कितना दुष्कर है प्रतिशब्द गढ़कर, मानस के व्याभिचार को निकालना ! लिखना होगा मुझे एक गीत अश्लील सा, ए ‘खुदा
Read Moreकितना दुष्कर है प्रतिशब्द गढ़कर, मानस के व्याभिचार को निकालना ! लिखना होगा मुझे एक गीत अश्लील सा, ए ‘खुदा
Read Moreसोंचता हूँ ! मेरे होने का अर्थ और जीने का मर्म है क्या भला ! ज़िंदगी की खलिशें, दर्द की
Read Moreमैं कैसे मरा…… ज़िंदगी का हर फ़लसफ़ा, बस दर्द ही देता गया ! मैं कैसे मरा ये भी , मेरा
Read Moreकभी तपिश, कभी बारिशें,और कभी मौसम सर्द । ऋतुएँ बदलें, जीवन वही, पग पग मिलता दर्द ।। व्यथित मन में
Read Moreरूठ कर सदा के लिए, चले गए हो तुम कहाँ । ये जिंदगी होगी भी तो, मगर पहले जैसी कहाँ
Read Moreसुर्ख रंग में ढलकर मुस्कुराती हैं, कभी ये खफ़ा नहीं होतीं। मद भरी मुहब्बत ही लुटाती हैं, शराबें बेवफ़ा नहीं
Read Moreतेरा छोड़ के जाना! एक छल था । कोई हादसा नही । ये जिंदगी है अब, एक टूटा सितारा ।
Read Moreमिट जाएंगे प्रतिबिम्ब, है निश्चित ! आज, अभी या कल । कितनी शलकायें, किसको सुध! जीवन जैसे – दृष्टिपटल ।।
Read Moreतकरीबन 18-19 साल पहले की एक धुंधली याद आज मन मे फिर ताजा हो गयी । संस्कृत विषय के एक
Read Moreअभी राह में हूँ । ऐ बरखा! जरा थम के बरस । या लगा लेने दे, दो घूंट “मैं” के
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