अल्हड़ सी लड़की बन जाऊँ
मन करता है आज फिर से वो अल्हड़ सी लड़की बन जाऊँ। जो चिड़िया सी फुदकती रहती थी घर के
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Read Moreज्ञान गंगा में नहला कर उज्ज्वल जो कर देता है। गति दे पथ की भटकन को सुमार्ग निर्दिष्ट कर देता
Read Moreव्यथित न हो कल पर सत्कर्म करते चलो। लेकर वृक्ष से प्रेरणा नव सृजन करते चलो। खिले आज थे जो
Read Moreहाँ! मैं मिट्टी हूँ पर बहुत जिद्दी हूँ। लिखी कुम्हार के हाथों तकदीर सनती कुटती पिटती हर दिन तोड़ा मरोड़ा
Read Moreवो घर से स्कूल स्कूल से घर दौड़ता बचपन पंतग की डोर सा मित्रों से लिपटा बचपन अपना टिफिन भूलकर
Read Moreधरती थक गई दे दे कर कम न हुई हवस मानव की निर्वस्त्र कर उजाड़ दिया कतरा कतरा सोख लिया
Read Moreआज कल्याण और अनवर में “वंदे मातरम्” और “भारत माता की जय” इन शब्दों लेकर बहस छिड़ गई। अॉफिस में
Read Moreदेखी है कभी किसी ने मन पर पड़ी झुर्रियां यह तो हमेशा बचपन ही जीता है ढूंढता रहता है कच्ची
Read Moreपरिवार का प्रणेता पिता है रक्षा हेतु वत्स की खड़ा है बह्मा सा रचयिता पिता है विष्णु सा पालक पिता
Read Moreरात के बारह बज रहे थे और वह नन्ही परी से जी खोलकर बतिया रही थी। सुन आज तू पूरे
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