कविता प्रवीण माटी 24/04/2018 चाह मेरी चाह बस इतनी सी है एक बार छू लूँँ बस एक बार जिंदगी तुझे बहुत सालों से दिखी नहीं Read More
अन्य प्रवीण माटी 27/03/201827/03/2018 कुछ छः 1. कौन-सा अपनापन जता रहे हो भाई साहेब !! मेरी पीठ का खून अब तक आपके हाथ पर है। 2. Read More
कविता प्रवीण माटी 27/03/2018 ऐसे बनती है जब पौ फटने के बाद चिड़ियों का स्वरवंदन होता है जब सिकर दोपहर में पसीने को छिटक कर किसान Read More
कविता प्रवीण माटी 05/03/2018 क्या जिंदगी का मुकाम क्या? सच में मेरा यहाँ पर नाम क्या? सब चिल्ला-चिल्ला कर प्रलाप करते आखिर मेरी ही Read More
कविता प्रवीण माटी 05/03/201805/03/2018 बात है (१)चांद का गुरुर फीका पड़ जाता है बादलों के आगे मैं जुगनू हूं यहाँ जमीं पर गुरूर है कि टिमटिमाता Read More
मुक्तक/दोहा प्रवीण माटी 05/03/201805/03/2018 माँ जमीन से जुड़ी हुई है किस्मत मेरी इसलिए मैं आसमान नहीं देखता मेरे हिस्से में मेरी माँ आयेगी इसलिए जायदाद Read More
कविता प्रवीण माटी 14/01/2018 भूख जाति,धर्म, संप्रदाय से कोसों दूर पेट की सिलवटें तैयार करती ‘भूख!’ बहुत निर्दयी है हवा की तरह है ये Read More
कविता प्रवीण माटी 14/01/201806/02/2018 महत्व बाग में महत्व इतना-सा माली खुश रहता है शोभा तो भगवान के चरणों में जाकर बढ़ती है झील नहीं मचा Read More
कविता प्रवीण माटी 14/01/2018 बदलाव जकड़ी गई पकड़ी गई पश्चिम के हथकड़ों में हम बस नापते रह गये मुट्ठीभर झूठे मानदंडों में गगनचुंबी इमारतों Read More
कविता प्रवीण माटी 06/01/2018 हिंदू टंगी हुई ढाल, तलवार देख क्रोधित फड़कती भुजा ललकार देख क्या पूछेगा परिचय हिंदू का ? इसके विशाल हृदय का Read More