कविता

बात है

(१)चांद का गुरुर फीका पड़ जाता है बादलों के आगे
मैं जुगनू हूं यहाँ जमीं पर गुरूर है कि टिमटिमाता रहूंगा

(२)भीड़ बहुत थी जिंदगी की कशमकश में
आज जरूरत इतनी सी है कोई बैठे पास मेरे

(३)जहां देखो वहां पर पराये लोगों का हुजूम मिलता है
इसलिए अब वीरानों में ही दिल को सुकून मिलता है

(४)टूटे हुए को उठा कर देखना कभी
जख्म जो हाथों में होते हैं
उनमें एहसास छुपा होता है
बहुत गहरा संमदर की तरहा

(५)कुछ लोग इबादत से नहीं किस्मत से मिलते हैं
इबादत सब करते हैं ,किस्मत किसी-किसी की!!!!

(६)कारवाँ बनाया है तुमनें
कांटों का सिरहाना बनाकर
तुम बेशक खामोश रहो
लोग गवाही देते हैं तेरे हुनर की

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733