व्यंग्य – घुसपैठ का चतुर्दिक अंदेशा
यदि आप सोचते हैं कि मैं भारतीय क्षेत्र में पाकिस्तानियों अथवा तालिबानी घुसपैठियों के सम्बन्ध में लिखने जा रहा हूँ
Read Moreयदि आप सोचते हैं कि मैं भारतीय क्षेत्र में पाकिस्तानियों अथवा तालिबानी घुसपैठियों के सम्बन्ध में लिखने जा रहा हूँ
Read Moreगुड़ की लैया नहीं मिली है, बहुत दिनों से खाने को। बचपन फिर बेताब हो रहा, जैसे वापस आने को।
Read Moreअम्मा हमने कार खरीदी यह तो बहुत काम की होती, मत कहना बेकार खरीदी। वर्षा जब होती है झम झम,
Read Moreप्यारी दादी अम्मा मुझको, चंदा जरा दिखादे। चमक रहे हैं नभ् में तारे, उनसे बात करा दे। मोबाईल पर पूरी
Read Moreछक्कु हिरना, गगन सियार में, था पक्का याराना। छक्कु टी वी देखा करता, उसके घर रोजाना। दिखे मारते छक्का एक
Read Moreकचरा फेका बीच सड़क पर , बड़े बेशरम | टोकनियों में लाये भर भर ,
Read Moreसंगीत सुहाना बच्चों का हँसना मुस्काना, जीवन का सुन्दरतम गाना। इससे अच्छा नहीं मिलेगा, दुनियाँ में संगीत सुहाना। — प्रभु
Read Moreनहीं गंदगी रहने देंगे आँगन का,कमरों का कचरा, हर दिन शाम खंगाला मैंने। सुबह सुबह
Read Moreघर की मियारी पर दादी ने, डाले दो झूले रस्सी के। चादर की घोची डाली है, तब तैयार हुए हैं
Read Moreअभी पूर्व से मुर्गा बोला, सूरज ने दे दी है बांग। लालूजी कवितायें लिखते, ऐसी ही कुछ ऊंट पटांग। कौआ
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