मृदा शिल्पकार
खेतों से मृदा उठाते, रौंद–रौंद वे मिलाते हैं अपनी हथेलियों से, चाक में बिठाते हैं। वृत्ताकार घूम घूम,पहिए में झूम
Read Moreखेतों से मृदा उठाते, रौंद–रौंद वे मिलाते हैं अपनी हथेलियों से, चाक में बिठाते हैं। वृत्ताकार घूम घूम,पहिए में झूम
Read Moreजीवन की बस यही कहानी। रंक बनें या राजा रानी।। रोम-रोम हो जाय प्रफुल्लित। अगले क्षण भ्रम करता विस्मित।। कभी
Read Moreशादी फिक्स होते ही लोगों का सबसे पहला सवाल– “प्री वेडिंग हो गई?” हो गई तो अच्छी बात है नहीं
Read Moreवादे करते कितने सारे, आश्वासन भरपूर। मोह पाश बॅंध जाती जनता, कैसे होंगे दूर।। स्पर्श चरण कर माथ लगाते, करते
Read Moreमम्मी….मम्मी….. सुनिए न! क्या हुआ मेरी गुड़िया? प्रातःकाल से इतना शोर क्यों मचा रही हो? मम्मी…..मिन्नी स्वरबद्ध होकर बोली और
Read Moreरंग प्रीत की सज गई आज। है खुशियों की होली।। उड़े गगन में तितली जैसे, मंजुल दिखे नजारे। रंग देख
Read Moreश्वेता को पिछले साल की होली याद थी। कभी नहीं भूल सकती उस होली-हुड़दंग को।
Read Moreमृणाल शहर से लोकप्रशासन की पढ़ाई पूरी कर गाँव आया। उसे लगा कि गाँव अब भी वैसा ही है, जैसा
Read Moreमाह फरवरी आतुर है मन, धरा प्रेम बरसाई, सुरभित गुलाब की पंखुड़ियाँ,
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