गीतिका – उदित हुए वो
उदित हुए वो नभ मंडल पर जैसे चांद उदय होता है शीतलता तेजस्व प्रखर जैसेदिनकर कुसुमय होता है लोग पराए देस पराया अंजाने
Read Moreउदित हुए वो नभ मंडल पर जैसे चांद उदय होता है शीतलता तेजस्व प्रखर जैसेदिनकर कुसुमय होता है लोग पराए देस पराया अंजाने
Read Moreरातों की सीयाही में अस्मत के लुटुरे हैं गुनाह में डूबे दिल, मन में भी अंधेरे हैं इंसानी जिस्म में
Read Moreअंतश में गूंजने लगा है , मौन का ये शोर। होने लगा है इसका , असर यूं चारो ओर। पलकों
Read Moreवक्त ने लम्हें सजाए, तुम नहीं आए। ढल गये रातों के साये, तुम नहीं आए। कदमों की आहटों पे, दिल
Read Moreमौसम-ए-इश्क है, उसपे ये बरसता सावन। आभी जाओ के है, मिलने को तरसता सावन। छुप गया चाँद, घटाओं के शोख
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