प्रसाद
जो थे छाया में भी छूत लिएवे भी अब चाव से खा रहे हैं,प्रतिबंधित जगहों के साथ हीघर मुहल्लों में
Read Moreकरना ही है तो करो अनुभूति,यूं न टाल दो दिखा सहानुभूति,इस दिखावे में ही रह जाते हो,इस मुद्दे पर क्यों
Read Moreसंविधान को रोने दो,शासकों को सोने दो,जो कभी नहीं हुआ अब वो होने दो,गड़े मुर्दे उखाड़ो,अपना मतलब निकलने तकपल्ला मत
Read Moreहम राजनीतिज्ञ हैं भाईतरह तरह के स्वांग रचाते हैं,जैसे ही चुनाव आयालोगों का ध्यान भटकाते हैं,जुमलों के इस दौर में
Read Moreसामाजिक रीत है एकजुट रहने का,अपनों के साथ अपनी बात कहने का,पर सामाजिक रीत की डोरइस कदर न बंधे हो
Read Moreछुपा नहीं पा रहे हो,गाहे बगाहे अपनी धृष्टता दिखा रहे हो,आज के इस सभ्य कहे जाने वाले युग में,हांक रहे
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