Author: राजेन्द्र लाहिरी

कविता

व्यंग्य कविता – चल जल्दी इस लाइन में

कोशिश कर तो सहीकुछ अच्छा सोचने की,कब तक उलझे रहोगेवहीं पीछे धकेलते दकियानूसियत में,पढ़ नहीं सकते,सोच नहीं सकते,तो निकल इस

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कविता

सब कुछ हो तुम्ही स्वीकार करो

जन जन का कल्याण करो,हे नेताजी उद्धार करो,उद्धार करो,जन मन गण अधिनायकों कासब कुछ हो तुम्हीं स्वीकार करो,हिस्सा खाने,भृकुटि ताने,बने

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