बिन दर्जी के वसन सिले हैं
घर आँगन में फूल खिले हैं । गुलशन में गुल नूर मिले हैं । चाहत भर आँखों ने देखा ।
Read Moreघर आँगन में फूल खिले हैं । गुलशन में गुल नूर मिले हैं । चाहत भर आँखों ने देखा ।
Read Moreआजकल के जमाने में, इसी पे शोध होता है। पड़ोसन की फ़िज़ा देखी, वहीं अवरोध होता है। गिनाने तब लगी
Read Moreमापनी – 122 122 122 122 ===================================== कभी गीत लिखना हमारे लिए तुम । नहीं राज कहना हमारे लिए तुम
Read Moreक्या लिखूँ कैसे लिखूँ , छन्द जब आता नहीं । भावना तूफान मन्मथ छन्द रस भाता नहीं । कल्पनाओं का
Read Moreसमस्त साहित्यकार मित्रों को दीपावली के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ ======================================== जयकारी लिख छ्न्द पुनीत ,
Read Moreछ्न्द शशि की कला । धर्मे की करबला । सोच कितनी सहज। दूर क्यों तू चला । राजकिशोर मिश्र ‘राज’
Read Moreचाँद सूरज ज़मीं पे उतर आए हैं। देख साहब यहाँ मन निखर आए हैं । राज वंदन करे चन्द शब्दों
Read Moreमाया ने हरि से कहा, श्याम आज क्यों मौन । चाह लिए राधा फिरे , दोषी जग में कौन ।
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