गीत/नवगीत

छन्द जब आता नहीं

क्या लिखूँ कैसे लिखूँ , छन्द जब आता नहीं ।
भावना तूफान मन्मथ छन्द रस भाता नहीं ।
कल्पनाओं का समुंदर , मापनी जब ले गयी।
छन्द रोई रात में जब , पंक्ति निराला बन गयी ।
छन्दमुक्ता बन खिली वह , रात रानी बावरी ।
राज लिखने जब लगा मन, छा गयी विभावरी।
कवि ह्रदय में रात दिन का सूक्ष्म अंतर है सखे ।
गुल खिले गुलशन में कैसे , ताज कांटो का लिए ।
फिर वो मुस्का कहेगी प्यार में सज गुलबदन ।
कीच में खिल कर कमल भीं, नित संदेशा दे चमन।
तू सृजन करता फिरे जब , प्यार की इक डोर से ।
दूर बैठा देखता रब , चाँदनी की छोऱ से ।
व्यस्त होकर मस्त हूँ मे , व्यस्त हे कविवर सुनो ।
छन्दमुक्ता रागिनी बन , राज छाया बादलो
राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी

राज किशोर मिश्र 'राज'

संक्षिप्त परिचय मै राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी कवि , लेखक , साहित्यकार हूँ । लेखन मेरा शौक - शब्द -शब्द की मणिका पिरो का बनाता हूँ छंद, यति गति अलंकारित भावों से उदभित रसना का माधुर्य भाव ही मेरा परिचय है १९९६ में राजनीति शास्त्र से परास्नातक डा . राममनोहर लोहिया विश्वविद्यालय से राजनैतिक विचारको के विचारों गहन अध्ययन व्याकरण और छ्न्द विधाओं को समझने /जानने का दौर रहा । प्रतापगढ़ उत्तरप्रदेश मेरी शिक्षा स्थली रही ,अपने अंतर्मन भावों को सहज छ्न्द मणिका में पिरों कर साकार रूप प्रदान करते हुए कवि धर्म का निर्वहन करता हूँ । संदेशपद सामयिक परिदृश्य मेरी लेखनी के ओज एवम् प्रेरणा स्रोत हैं । वार्णिक , मात्रिक, छ्न्दमुक्त रचनाओं के साथ -साथ गद्य विधा में उपन्यास , एकांकी , कहानी सतत लिखता रहता हूँ । प्रकाशित साझा संकलन - युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच का उत्कर्ष संग्रह २०१५ , अब तो २०१६, रजनीगंधा , विहग प्रीति के , आदि यत्र तत्र पत्र पत्रिकाओं में निरंतर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती हैं सम्मान --- युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच से साहित्य गौरव सम्मान , सशक्त लेखनी सम्मान , साहित्य सरोज सारस्वत सम्मान आदि