चाय पर चर्चा -4
कलुआ को बोलता देख रामू काका भी कब तक चुप रहते ? बोल ही पड़े ” सही कह रहे हो
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Read Moreसजी हैं गलियां सजे चौबारे सजे पंडाल हैं सारे जाकर तुझको साल भये हैं फिर आ संग हमारे ओ गणपति
Read Moreमन बुढा हो तो तन बुढा ‘ सीख़ हमें दे जाती है सौ साल की दादी जब ‘ स्वर्ण पदक
Read Moreअजय भी पीछे हटने के मूड में बिलकुल नहीं था । वह इन देहातियों के मन से मोदी सरकार के
Read Moreपुर्वकथा सार : हम कुछ मित्र मुंबई से माता वैष्णोदेवी के दर्शन कर भैरव घाटी की ओर बढे । अब
Read Moreचोंच है मेरी लाल लाल और पंख हैं मेरे हरे आज बताता हूँ मैं तुमको जख्म हैं कितने गहरे ।
Read Moreन मारो बेटियों को न मारो बेटियों को ‘ उन्हें पैदा होने दो न जाने कौनसी बेटी का जग में
Read Moreपुर्वकथा सार : हम कुछ मित्र मुंबई से ट्रेन द्वारा जम्मू और फिर बस द्वारा कटरा पहुंचे । बाणगंगा से
Read Moreमैया हम हैं सहारे तेरे आये हैं द्वारे तेरे कब से नवाए हैं शीश रे मैया जी भर के दे
Read Moreएक चाय की दूकान पर कुछ गाँव वालों और एक पत्रकार के बीच राजनितिक बहस छिड़ी है । अब आगे……………
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